मानवता हुई शर्मशार समय से नहीं मिली एम्बुलेंस,दिव्यांग ने पिता की लाश को ठेलिया से ढोया

हैदरगढ़ बाराबंकी:
मुन्ना सिंह

हैदरगढ़ बाराबंकी : मानवता हुई शर्मशार समय से नहीं मिली एम्बुलेंस ,कई बार 108 पर फोन करने के बाद भी एम्बुलेंस नहीं मिल पायी जिसे मजबूर होकर दिब्यांग अपने बीमार पिता के इलाज के लिए अपनी बहन के साथ 6 किलो मीटर दूर ठेलिया लेकर पंहुचा CHC त्रिवेदीगंज,समय से एम्बुलेंस ना मिलने से हुई मौत,वापस फिर ठेलिया से पंहुचा गाँव

गरीबी बनी अभिशाप....लंबे समय से बीमार पिता की इलाज में सब कुछ गवा चुके दिव्यांग राजकुमार के पिता का  गरीबी के कारण आज सुबह तक अंतिम संस्कार नहीं हो पाया, कुछ ग्रामीणों की मदद से हुआ अंतिम संस्कार,घास फुस की झोपडी में रह रहे राजकुमार ने बताया की राशन कार्ड तो बना लेकिन कोई अन्य सरकारी सुविधा नहीं मिल रही है
ताज़ा मामला त्रिवेदीगंज सीएचसी का है जहां गरीबी की मार झेल रहे 50 साल के मंशाराम को मरने के बाद भी उसकी कीमत चुकानी पड़ी मंशाराम का परिवार जो इस उम्मीद में था कि उसे सरकार की किसी न किसी योजना का तो लाभ मिलेगा ही जिससे वह कम से कम अपने पिता के मरने के बाद उसका शव वहां से ले जाकर अंतिम संस्कार कर सके मगर अफसोस कि उसकी सारी उम्मीदों पर उस समय पानी फिर गया जब उसे अपने पिता के शव को ले जाने के लिए एक गाड़ी तक नसीब नहीं हुई।
परिवार के घंटों इस इंतजार में बीत गए कि शायद किसी को उनकी इस हालत पर तरस आ जाए और उनके पिता के शव को ले जाने के लिए कोई इंतजाम कर दे लेकिन जब मदद के लिए किसी तरफ से कोई हाथ नहीं उठा तो मजबूरी में मृतक मंशाराम का शव उसके दिव्यांग लड़के राजकुमार और मासूम लड़की को ठेलिया से आठ किलोमीटर घसीट कर लोनी कटरा तक ले जाना पड़ा दरअसल सोमवार को बीमार मंशाराम का लड़का और लड़की उसे इलाज के लिए ठेलिया पर लादकर ही सीएचसी त्रिवेदीगंज लेकर पहुंचे थे जहां उसकी मौत हो गई थी
सीएचसी के डॉक्टर बस इतना कहते रहे कि गांव के प्रधान को जानकारी दी गई है वह मदद करेंगे लेकिन कोई नहीं आया। स्वास्थ्य विभाग की संवदेनहीनता का आलम ये है कि कोई सरकारी और आर्थिक मदद न होने के चलते अभी तक मंशाराम के शव का अंतिम संस्कार भी नहीं हो सका है सीएचसी के डॉक्टरों से जब इस बारे में बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने पूरे मामले से पल्ला झाड़ते हुए बहुत ही बेहुदा और गैरजिम्मेदाराना रवैया दिखाया। सीएचसी के डॉक्टर ये कहकर अपनी जान छुड़ाते रहे कि यहां से शव को वापस गांव भिजवाने की कोई व्यवस्था नहीं है।
वहीं इस पूरे मामले पर जब मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर रमेश चंद्र से बात की गई तो उन्होंने कहा कि मृतक मंशाराम लंबे समय से काफी बीमार था। उसके या उसके परिवार की तरफ से कोई जानकारी न देने की वजह से उसे लेने 108 एम्बुलेंस उसके घर नहीं पहुंच सकी अगर कोई जानकारी देता तो उसे जरूर एम्बुलेंस से सीएचसी पहुंचाया जाता। वहीं शव को ले जाने के सवाल पर डॉक्टर रमेश चंद्र ने बताया कि जिला अस्पताल में केवल दो शव वाहन उपलब्ध हैं सीएचसी में शव को ले जाने के लिए शव वाहन की कोई व्यवस्था नहीं होती। लेकिन अगर सीएचसी इंचार्ज वहां मौजूद होते तो जरूर मृतक मंशाराम के शव को अपने निजी खर्च पर घर उसके घर भिजवाते।
Share To:

Post A Comment:

0 comments so far,add yours