ब्यूरो रिपोर्ट शंकरगढ़

शंकरगढ़(इलाहाबाद) नगर पंचायत शंकरगढ़ के किसी गली मोहल्लों में जमे कूड़े के ढेर पर मासूम बच्चों को कूड़ा बीनते देखना आम बात है । जब एक बच्चे से पूछा गया कि आप कूड़ा क्यो बिन रहे हो क्या तुम स्कूल नही जाते ,उस बच्चे की बात सुनकर रोंगटे खड़े हो गए । उसने बताया कि मेरे घर मे पिता की तबियत बहुत दिनों से खराब है । घर पर छोटे - छोटे भाई बहन व मां है मुझे ही घर का पेट भरने के लिए कूड़ो में कबाड़ चुनकर पैसा जुटाना पड़ता है । यही हाल कमोबेश पूरे देश का है ,अब प्रश्न उठना स्वाभाविक है । जहां एक तरफ बचपन बचाओ मुहिम में सक्रीय योगदान के लिए भारत के कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया । जिसकी पूरी दुनियां में चहुंओर प्रशंसा हुआ । एक बार ऐसा लगा कि कैलाश सत्यार्थी के साथ हमारे देश की सरकारें कदम से कदम मिलाकर पूरे देश से बाल श्रम के अभिशाप को हमेशा - हमेशा के लिए खत्म कर देगी ,लेकिन कुछ भी ऐसा होता हुआ नही दिखाई पड़ा । बाल श्रम कानून की धज्जियां उड़ते शंकरगढ़ में बखूबी देखा जा सकता है । शंकरगढ़ में कूड़ो के ढेर पर जिंदगी की जद्दोजहद के लिए कूड़े बीनते हुए मासूमों का दिखाई पड़ना आम बात है और इतना ही नही जब हम किसी होटल या चाय पान के दुकानों पर नास्ता आदि के लिए जाते हैं तो इन छोटे बच्चों को छोटू ,राजू ,चवन्नी आदि न जाने कितने नामों से नवाज देते हैं । क्या हमने कभी सोचा है कि ये बच्चे हंसी के पात्र नही बल्कि ये भी समाज का ही एक हिस्सा है ,हंसी इन मासूमों पर नहीं बल्कि सरकार पर आनी चाहिए । जिसका कर्तव्य है कि एक भी बच्चा स्कूल जाने से वंचित न रह जाए ।


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