क्राइम न्यूज ब्यूरो चीफ ज्ञानेन्द्र नाथ तिवारी पटना से रिपोर्ट
बिहार के सरकारी विद्यालय में बिना किताब के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की अद्भुत अनुसंधान चल रहा है। पिछले तीन-चार वर्षो से सभी बच्चों को किताब उपलब्ध करवा सकने में नाकाम रही है बिहार सरकार। इस शैक्षणिक वर्ष से किताब के बदले पैसे बच्चों के खाते में ट्रांसफर करने की योजना बनायी गयी। सरकार के तरफ से यह दलित दी गयी कि पिछले कुछ सालो से किताब छापने वाले पब्लिकेशन समय पर किताब छापकर नहीं देते थे। इसलिए इस बार से यह नियम लागू किया गया है। ताकि बच्चों को समय पर किताब मिल सके। पहले तो शिक्षा विभाग ने तय किया कि प्रारंभिक विद्यालय में 50 फीसदी उपस्थिति वाले बच्चे को ही किताब खरीदने के लिए पैसे मिलेंगे। अब शैक्षणिक वर्ष के पाँच महीने बीत जाने के बाद शिक्षा विभाग समीक्षा की तो अभी तक मात्र 44 फीसदी बच्चों के खाते में ही पैसा ट्रांसफर हो पाया था। फिर योजना में बदलाव करके 50 फीसदी उपस्थिति वाला नियम को खत्म किया गया।
प्रारंभिक विद्यालय में पढ़ने वाले दस वर्ष के कम आयु वाले बच्चों का खाता नहीं रहने के वजह से किताब का पैसा बहुत बच्चो को नहीं मिल पाया। फिर विभाग द्वारा निर्णय लिया गया कि दस वर्ष के कम आयु वाले बच्चों के माता-पिता या अभिभावक के खाते में राशि हस्तांतरित किया जाये। क्या योजना बनाने वाले को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि बैंक दस वर्ष के कम आयु के बच्चे का खाता नहीं खोल पाती। इस तरह के योजना बनाने वाले शायद दुसरे ग्रह के प्राणी होते होंगे। योजना बनाने के पहले सभी तथ्यों की पूर्ण जानकारी नहीं ली जाती है या फिर जानबूझकर सरकारी पैसे की लूट और शिक्षा व्यवस्था को चौपट करने का खेल खेला जाता है।
उम्मीद एक किरण सामाजिक संस्था की तरफ से गिरती शिक्षा व्यवस्था और बच्चों को समय से किताब नहीं मिलने की बात को अनेको बार संबंधित शिक्षक और प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी के पास रखा गया है। लेकिन इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिल पाया। संस्था के अध्यक्ष राम जी का कहना है कि यदि शिक्षा विभाग की सही तरीके से जांच हो तो बिहार में बहुत बड़ा शिक्षा घोटाला सामने आयेगा। अभी तक की कोई सरकार गरीब के बच्चे को पढ़ाना ही नहीं चाही है। अभी के तत्काल सरकार के तरफ से विद्यालय का जांच-पड़ताल हो रहा है उससे कुछ नहीं होने वाला है। सरकारी माल को खाने-खिलाने के बाद सब मामला रफा-दफा हो जायेगा। एक तरफ पहले अनपढ़ शिक्षक को बहाल करते हैं और दुसरे तरफ कहते हैं कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही है। इसे कहते है चीत भी मेरी पट भी मेरी। एक समान शिक्षा नीति के बिना शिक्षा व्यवस्था में सुधार कभी हो ही नहीं सकता।
बिहार के सरकारी विद्यालय में बिना किताब के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की अद्भुत अनुसंधान चल रहा है। पिछले तीन-चार वर्षो से सभी बच्चों को किताब उपलब्ध करवा सकने में नाकाम रही है बिहार सरकार। इस शैक्षणिक वर्ष से किताब के बदले पैसे बच्चों के खाते में ट्रांसफर करने की योजना बनायी गयी। सरकार के तरफ से यह दलित दी गयी कि पिछले कुछ सालो से किताब छापने वाले पब्लिकेशन समय पर किताब छापकर नहीं देते थे। इसलिए इस बार से यह नियम लागू किया गया है। ताकि बच्चों को समय पर किताब मिल सके। पहले तो शिक्षा विभाग ने तय किया कि प्रारंभिक विद्यालय में 50 फीसदी उपस्थिति वाले बच्चे को ही किताब खरीदने के लिए पैसे मिलेंगे। अब शैक्षणिक वर्ष के पाँच महीने बीत जाने के बाद शिक्षा विभाग समीक्षा की तो अभी तक मात्र 44 फीसदी बच्चों के खाते में ही पैसा ट्रांसफर हो पाया था। फिर योजना में बदलाव करके 50 फीसदी उपस्थिति वाला नियम को खत्म किया गया।
प्रारंभिक विद्यालय में पढ़ने वाले दस वर्ष के कम आयु वाले बच्चों का खाता नहीं रहने के वजह से किताब का पैसा बहुत बच्चो को नहीं मिल पाया। फिर विभाग द्वारा निर्णय लिया गया कि दस वर्ष के कम आयु वाले बच्चों के माता-पिता या अभिभावक के खाते में राशि हस्तांतरित किया जाये। क्या योजना बनाने वाले को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि बैंक दस वर्ष के कम आयु के बच्चे का खाता नहीं खोल पाती। इस तरह के योजना बनाने वाले शायद दुसरे ग्रह के प्राणी होते होंगे। योजना बनाने के पहले सभी तथ्यों की पूर्ण जानकारी नहीं ली जाती है या फिर जानबूझकर सरकारी पैसे की लूट और शिक्षा व्यवस्था को चौपट करने का खेल खेला जाता है।
उम्मीद एक किरण सामाजिक संस्था की तरफ से गिरती शिक्षा व्यवस्था और बच्चों को समय से किताब नहीं मिलने की बात को अनेको बार संबंधित शिक्षक और प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी के पास रखा गया है। लेकिन इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिल पाया। संस्था के अध्यक्ष राम जी का कहना है कि यदि शिक्षा विभाग की सही तरीके से जांच हो तो बिहार में बहुत बड़ा शिक्षा घोटाला सामने आयेगा। अभी तक की कोई सरकार गरीब के बच्चे को पढ़ाना ही नहीं चाही है। अभी के तत्काल सरकार के तरफ से विद्यालय का जांच-पड़ताल हो रहा है उससे कुछ नहीं होने वाला है। सरकारी माल को खाने-खिलाने के बाद सब मामला रफा-दफा हो जायेगा। एक तरफ पहले अनपढ़ शिक्षक को बहाल करते हैं और दुसरे तरफ कहते हैं कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही है। इसे कहते है चीत भी मेरी पट भी मेरी। एक समान शिक्षा नीति के बिना शिक्षा व्यवस्था में सुधार कभी हो ही नहीं सकता।



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