प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार डाबर देवता का मेला
बांदा। जनपद के अतर्रा तहसील अन्तर्गत आस्था के प्रतीक डाबर देवता का मेला कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होकर 15 दिनों तक चलता है। यहां क्षेत्र के सैकड़ों गांवों के लोग मन्नतों के लिए प्रतिदिन दस्तक दे रहे हैं। निरंतर भंडारे भी चल रहे हैं लेकिन प्रशासन की उपेक्षा के चलते डाबर देवता का मेला अपनी पहचान नहीं बना सका।
अतर्रा तहसील मुख्यालय से 10 किलोमीटर स्थित बिसंडा ब्लाक के ग्राम पंचायत पुनाहुर में देवों के देव डाबर देवता धार्मिक स्थल देखने में मिट्टी का टीला है, न कोई मूर्ति न कोई आकार, किंतु लोगों की श्रद्धा अपार है। इस धार्मिक स्थान की ख्याति क्षेत्र सहित पड़ोसी राज्यों की सीमा तक फैली हुई है।
खेरापति के नाम से विख्यात इस स्थान में चंद्रावल, सिकलोढी, गडाँव, बिसंडा आदि दर्जनों ग्रामों के लोगों द्वारा कार्तिक पूर्णिमा के दिन से सवा किलो से लगा कर सवा कुंतल तक के लड्डू का प्रसाद चढ़ाने की परंपरा जारी है । श्रद्धा व आस्था में डूबे आस-पास के गांवों में नाते रिश्तेदारों की आवक भी बढ जाती है। अटूट श्रद्धा इतनी है कि छोटे से मांगलिक कार्यों के अलावा बड़े मांगलिक कार्य भी उनके बिना दर्शन के पूरे नहीं होते है।धार्मिक स्थल पर सैकड़ों दुकानें लगती हैं। नौनिहाल बच्चों के लिए बेहतरीन झूले लगते हैं तथा विराट दंगल का आयोजन भी होता है। श्रद्धालुओं की मन्नतें पूर्ण होने पर बड़ी संख्या में लोग प्रसाद चढ़ाने आते हैं तथा भंडारे साल भर चलते रहते हैं। सैकड़ों वर्ष प्राचीन स्थान डाबर क्षेत्र में स्वप्न द्वारा स्थान मिलने से डाबर देवस्थान नाम पड़ा। सन 70 के दशक तक यहां मेला का स्थान जिला गजट में दर्ज था।
राहुल त्रिवेदी
रिपोर्टर बाँदा
क्राइम18न्यूज़
बांदा। जनपद के अतर्रा तहसील अन्तर्गत आस्था के प्रतीक डाबर देवता का मेला कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होकर 15 दिनों तक चलता है। यहां क्षेत्र के सैकड़ों गांवों के लोग मन्नतों के लिए प्रतिदिन दस्तक दे रहे हैं। निरंतर भंडारे भी चल रहे हैं लेकिन प्रशासन की उपेक्षा के चलते डाबर देवता का मेला अपनी पहचान नहीं बना सका।
अतर्रा तहसील मुख्यालय से 10 किलोमीटर स्थित बिसंडा ब्लाक के ग्राम पंचायत पुनाहुर में देवों के देव डाबर देवता धार्मिक स्थल देखने में मिट्टी का टीला है, न कोई मूर्ति न कोई आकार, किंतु लोगों की श्रद्धा अपार है। इस धार्मिक स्थान की ख्याति क्षेत्र सहित पड़ोसी राज्यों की सीमा तक फैली हुई है।
खेरापति के नाम से विख्यात इस स्थान में चंद्रावल, सिकलोढी, गडाँव, बिसंडा आदि दर्जनों ग्रामों के लोगों द्वारा कार्तिक पूर्णिमा के दिन से सवा किलो से लगा कर सवा कुंतल तक के लड्डू का प्रसाद चढ़ाने की परंपरा जारी है । श्रद्धा व आस्था में डूबे आस-पास के गांवों में नाते रिश्तेदारों की आवक भी बढ जाती है। अटूट श्रद्धा इतनी है कि छोटे से मांगलिक कार्यों के अलावा बड़े मांगलिक कार्य भी उनके बिना दर्शन के पूरे नहीं होते है।धार्मिक स्थल पर सैकड़ों दुकानें लगती हैं। नौनिहाल बच्चों के लिए बेहतरीन झूले लगते हैं तथा विराट दंगल का आयोजन भी होता है। श्रद्धालुओं की मन्नतें पूर्ण होने पर बड़ी संख्या में लोग प्रसाद चढ़ाने आते हैं तथा भंडारे साल भर चलते रहते हैं। सैकड़ों वर्ष प्राचीन स्थान डाबर क्षेत्र में स्वप्न द्वारा स्थान मिलने से डाबर देवस्थान नाम पड़ा। सन 70 के दशक तक यहां मेला का स्थान जिला गजट में दर्ज था।
राहुल त्रिवेदी
रिपोर्टर बाँदा
क्राइम18न्यूज़



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